शंख की उत्पत्ति

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शंख की उत्पत्ति कैसे हुयी?

इस परिपेक्ष्य में पौराणिक ग्रन्थ कहते है कि सृष्टि से आत्मा, आत्मा से प्रकाश, प्रकाश से आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और जल से पृथ्वी की उत्पति हुयी है। इन सभी तत्वों से मिलकर शंख का निर्माण हुआ है। ब्रहमवैवर्तपुराण के अनुसार शंख सूर्य और चन्द्रमा के समान देवस्वरूप है। इसके अग्र भाग में गंगा सरस्वती, पृष्ठ भाग में वरूण और मध्य में स्वयं ब्रहमा जी विराजमान है।
वैसे तो शंख कई प्रकार के होते हैं, लेकिन जिस घर में दक्षिणावर्ती शंख होता है, और उसे नियमित रूप से इस्तेमाल में लाया जाता है, उस घर से नकारात्म्क ऊर्जा दूर रहती है।
अगर वाणी में है दोष
यदि कोई बोलने में असमर्थ या किसी भी प्रकार का कोई वाणी दोष है तो शंख बजाने से लाभ मिलता है। शंख बजाने से कई तरह के फेफेड़े के रोग जैसे दमा, संक्रमण, क्षय, दिल की बीमारी, पेट की बीमारी और आस्थमा आदि रोगों से निजात मिलती है। शंख बजाने से पूरे शरीर में वायु का प्रवाह अच्छे तरीके से होता है, जिससे हमारा शरीर निरोगी हो जाता है।
गर्भवती महिला को मिलता है लाभ
शंख के जल से शालिग्राम को स्नान करायें और उसके बाद उस जल को गर्भवती महिला को पिला देने से होने वाला बच्चा स्वस्थ्य रूप से पैदा होता है।
अगर नहीं हो रही है सन्तान
 जिन महिलाओं को सन्तान होने की समस्या है, उन्हे यदि नियमित रूप से दो क्षिणावर्ती शंख में जल डालकर पिलाया जाये तो सन्तान प्राप्त हो सकती है
दूर करता है नकारात्मक ऊर्जा
ब्रहमवैवर्तपुराण के अनुसार शंख में जल भरकर रखने के कुछ समय पश्चात उसी जल से पूजन सामग्री धोयें एंव बचे हुये जल को पूरे घर में छिड़कने से घर का वातारण शुद्ध हो जाता है जिससे किसी भी प्रकार की नकारात्मक उर्जा भवन में टिक नहीं पाती है।
प्रसन्न होते हैं भोलेनाथ
 शंख से शिव जी का अभिषेक करने पर भोले बाबा अत्यन्त प्रसन्न हो जाते है।
घर में आता है धन
दक्षिणावर्ती शंख को पूजा कक्ष में रखकर उसका विधिवत पूजन करने से घर की आर्थिक स्थिति बनी रहती है एंव परिवार में आपसी प्रेम का अच्छा वातावरण बना रहता है।
मर जाते हैं जीवाणु
शंख की ध्वनि में एक खास बात होती है कि इससे निकलने वाली ध्वनि से 200 मीटर के अन्दर वातावरण में रहने वाले ऐसे जीवाणु मर जाते है, जो अन्य किसी भी तरीके से नहीं मरते है।
शंख की पूजा के लिये मंत्र शंख की पूजा इस मन्त्र से करनी चाहिए

त्वंपुरा सागरोत्पन्न विष्णुनाविघृतःकरे देवैश्चपूजितः सर्वथौपाच्चजन्यमनोस्तुते।

महाकाल ज्योतिषदरबार
गुरुदेव भवानीज्योतिषी
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