🙏🌹।।जय श्री कृष्ण।।🌹🙏
👉कृष्ण जन्माष्टमी 2025: विशेष
● भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव जन्माष्टमी को पूरे देश में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है, इस दिन आधी रात को कान्हा जी का जन्मोत्सव संपन्न होता है और मंदिरों व घरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है, पूजा में फूल, माखन, मिश्री, पान, तुलसी, पंजीरी, पंचामृत, मिठाई आदि के साथ एक विशेष भोग सामग्री का प्रयोग अनिवार्य माना जाता है – खीरा।
● इस साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 16 अगस्त को मनाई जा रही है, श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में मध्य रात्रि में होने की वजह से कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा भी रात 12 बजे की जाती है, इस दिन श्रीकृष्ण भक्त पूजा और व्रत रखकर अपने आराध्य को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन एक और चीज बेहद खास होती है और वो है आधी रात को खीरा काटना।
● जन्माष्टमी के दिन जितना महत्व लड्डू गोपाल की पूजा में माखन मिश्री का है, उतना ही खीरे का भी है, खीरे के बगैर बांके बिहारी की पूजा अधूरी है, जो कोई भी भगवान श्री कृष्ण को खीरा चढ़ाता है उससे कान्हा हमेशा प्रसन्न रहते हैं और उसकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं, ऐसी मान्यता है कि पूजा में इस्तेमाल किया जाने वाला खीरे डंठल वाला होना चाहिए, तभी वह पूजा के लिए उपयुक्त हो सकता है, सदियों से ही कृष्ण जन्म के समय मध्यरात्रि को खीरा काटने की रस्म चली आ रही है।
● धार्मिक मान्यता के अनुसार, खीरे को मां देवकी की प्रसव पीड़ा से मुक्ति और कारागार के द्वार खुलने का प्रतीक माना जाता है, खीरे के भीतर मौजूद बीज गर्भ का प्रतीक होते हैं, जिन्हें काटकर बाहर निकालना भगवान के अवतरण का संकेत माना जाता है इसी वजह से जन्माष्टमी की रात, ठीक 12 बजे यानी कृष्ण जन्म के समय पर, खीरा काटकर उसे लड्डू गोपाल को अर्पित किया जाता है, इस उपाय से घर में सुख-समृद्धि आती है और जीवन में हर बाधा दूर होती है।
● डंठल वाले खीरे से जुड़ी मान्यता है कि जब बच्चे का जन्म होता है, तो बच्चे को मां के गर्भ से अलग करने के लिए गर्भनाल या नाल फूल को काटा जाता है, ठीक उसी प्रकार डंठल वाले खीरे को भगवान श्री कृष्ण का गर्भनाल या नालफूल माना जाता है और खीरे के डंठल को खीरे से काटकर अलग करना, श्री कृष्ण को मां देवकी से अलग करने की रस्म के तौर पर मनाया जाता है, इस डंठल वाले खीरे को काटने की रस्म को नाल छेदन के नाम से जाना जाता है।