पितृ शांति विधान एवं पितृ ऋण मुक्ति ||

यह विधान मुझे मेरे गुरु संत चिंतामणि जी से प्राप्त हुआ था | जिसे मैंने ही नहीं कई लोगों ने किया और लाभ प्राप्त किया | यह बहुत ही अच्छा  विधान है | इसके बहुत लाभ हैं |

 १.  पितृ जब रुष्ट होते हैं तो घर में हमेशा कलह का माहौल रहता है | उसकी शांति हो जाती है | तो घर का माहौल भी ठीक हो जाता है |

 २.  कई बार साधक कई साधनाएं करता है मगर बहुत प्रयत्न के बाद भी उसे सफलता नहीं मिलती, इसके पीछे भी कई बार पितृ क्रोपी होती है | शांति होने पर वो आपकी साधना में सहयोग देने लगते हैं और आप सफल हो जाते हैं |

 ३.  कई बार घर में अजीब घटनाएं होने लगती हैं | इसके पीछे भी कई बार पितृ क्रोपी ही होती है |

 ४. ऋण में धंसते जाना भी पितृ ऋण की वजह से होता है और शांति पर आप को एक सकून मिलता है | ऋण मुक्ति के कई साधन बन जाते हैं |

 ५.  कई बार इन्सान अनेकों बीमारियों में जकड़ जाता है | उसके पीछे भी कहीं ना कहीं पितृ क्रोपी ही होती है |

 ६.  अचानक एक्सीडेंट आदि होना भी इसकी वजह होता है | ऐसा मैंने कई लोगों को मिलकर महसूस किया है | कोई भी उपाय काम नहीं आता | सभी बेकार हो जाते हैं | यहाँ तक की देवता भी आप को कुछ दे, उसका भी असर नहीं होने देते पितृ | गुरु भी अगर कुछ देते हैं तो उसका फल भी रोक लेते हैं पितृ | जब तक उनकी संतुष्टि नहीं होती अपने पास ही रखते हैं |

 ७. मैंने एक बार मेने गुरु जी चिंतामणि जी से पूछा था कि गुरु तो सर्वशक्तिशाली होते हैं | क्या वो पितरों को शांत नहीं कर सकते, तो इस पर उन्होंने कहा कि गुरु केवल मार्ग बता देते हैं, शांति तो आपको ही करनी होती है | पितृ तो देवता को भी भगा देते हैं | यह कहते हुए कि यह हमारा खानदान है, हमारी मर्जी के बिना आप कुछ नहीं दे सकते और हम सिर्फ अपने खानदान से ही पूजा लेते हैं | आप तो हर घर के मेहमान हैं | पितृ साल में दो बार भोजन करते हैं |

पितृ देव क्या हैं ?

खानदान से गई हुई अतृप्त आत्माएं होती हैं जो सदगति को प्राप्त नहीं होती | श्राद्ध आप अपने बाप दादा के नाम से कर देते हो मगर पितृ सिर्फ अपने खून के माध्यम से भोजन लेते हैं, किसी भी पंडित या अन्य बाहर के या दुसरे गोत्र के माध्यम से नहीं, इस बात का खुलासा भी उन्होंने किया |

अब सवाल उठता है कि ऐसा क्या करें, कौन सा विधान अपनाएं जो पितृ संतुष्ट हो कर हमे सहयोग दें और हमारे हर कार्य और साधना को सफलता दें तो इस पर उन्होंने एक विधान बताया और उसे मैं आपके लाभ हेतु दे रहा हूँ |

विधान और साधना

यह दो दिन का प्रयोग है |

सामग्री  – एक चांदी का गोल चंद्रमा बनवा लें सुनार से, उस पर यह मन्त्र लिखें |

|| सर्व पितृ देव  प्रसनों भव ||

अपने नाप के सफ़ेद वस्त्र सिला लें, एक सफ़ेद रुमाल भी लें |

सवा मीटर सफेद कपडा भी ले आयें |

इसके अलावा सफेद चंदन, सफेद पुष्प और खाद्य सामग्री जिसमें दूध, खीर ,दाल, रोटी, कडाही (हलवा )जिसे कई स्थानों पर काशार भी कहा जाता है,  घर में ही बना लें | इसके अलावा शुद्ध घी, तेल का दीपक, सफेद धागा ,और गुड़ यह आवश्यक है |

अब सर्व पितृ श्राद्ध  वाले दिन या किसी भी शनिवार को इस प्रयोग को करें | सुबह 6 से 11 बजे तक इसे कभी भी किया जा सकता है |

सुबह उठकर स्नान करें और सफ़ेद धोती आदि पहन लें या कोई भी वस्त्र लुंगी आदि धारण कर लें और पूर्व की ओर मुख करके पूजन करें | इससे पहले जहाँ आपने प्रयोग  करना है, उस स्थान को शुद्ध  कर लें | अब नीचे एक आसन बिछा लें और एक थाली में  “क्षं” बीज लिखें और उसपर एक सफ़ेद पुष्प रख कर उसके उपर चंद्रमा में सफ़ेद धागा ड़ाल कर रख दें और गुरु जी से प्रार्थना कर भूमि को नमस्कार करें और पूजन शुरू करें | उस चंद्रमा का पंचौपचार  से पूजन करना है |

पहले थोड़े सफ़ेद अक्षत लेते हुए मन्त्र पढ़ते हुए उस पर चढ़ाएं |

|| ॐ प्रीं सर्व  पितृ प्रतिष्ठतो भव प्रसनों  भव ||

कहते हुए चावल छिड़क दें और फिर दूध में थोड़ा पानी मिला कर चंद्रमा को  स्नान कराएं |

ॐ प्रीं  सर्व पितृ प्रसनों  भव स्नानं समर्पयामि ||

फिर सफ़ेद चंदन का तिकल करें |

ॐ प्रीं सर्व पितृ प्रसनों  भव गन्धम समर्पयामि ||

फिर धूप  दें |

ॐ प्रीं सर्व पितृ प्रसनों  भव धूपं समर्पयामि ||

फिर तेल का दिया जला दें | दिये का मुख पूर्व दिशा की ओर हो |

ॐ प्रीं सर्व पितृ प्रसनों भव दीपं समर्पयामि ||

फिर थोड़ा गुड़ का नैवेद्य समर्पित करें |

ॐ प्रीं सर्व पितृ प्रसनों भव नैवेद्यं समर्पयामि ||

अब थोड़ा जल चढ़ा कर आचमनी दें और एक गोबर के उपले को जलाकर अंगियार सा बना लें | उसे एक पात्र में रख कर अपने सभी पितरों से उपस्थित होने की प्रार्थना करें और उस उपले पर थोड़ा घी और गुड़ ड़ाल दें और चंद्रमा को उस पर घूमा लें और कहें –  हे मेरे पितरों, मैं आपके नाम से भोजन और वस्त्र दे रहा हूँ, आप मेरे दुआरा ग्रहण करें | फिर उस चंद्रमा को धारण कर लें, ऐसा करते ही आपको उनकी उपस्थिति का एहसास हो जायेगा |

अब वस्त्र जो आपने अपने नाप के सिलाये हैं, उसी उपले पर जिस पर गुड़ और घी डाला है, उपर से घुमा लें |

ॐ प्रीं सर्व पितृ प्रसनों भव वस्त्र समर्पयामि ||

यह मन्त्र बोलें और वस्त्रों को स्वयं धारण कर लें और फिर भोजन एक थाली में उतना ही लें,  जितना खा सकते हों,  ज्यादा नहीं |

पहले उपले पर घी और गुड़ डालें, फिर भोजन में से थोड़ा-थोड़ा लेकर उसी उपले पर डाल दें और अंत में थाली धूप (उपले पे घूमा लें ) लें | इसी तरह थोड़ा पानी भी दें और फिर

 || ॐ सर्व पितृ प्रसनों भव भोजन समर्पयामि ||

कहते हुए पितरों से निवेदन करें कि वो यह भोजन मेरे दुआरा ग्रहण करें और स्वयं भोजन खा लें | फिर पानी और फिर अपने झूठे बर्तन स्वयं उठायें और धोकर रख दें | वस्त्र पहनते हुए सफ़ेद रुमाल सिर पर ले लेना चाहिए और इस तरह पहले दिन का विधान पूर्ण हो जाता है

जरूरी नोट —– इस दिन आप ना कहीं जाएँ और ना किसी के घर का भोजन या चाय स्वीकार करें, क्योंकि सारा दिन पितृ आपके साथ रहकर आपको अपनी उपस्थिति का भान करायेंगे और आप में वास करेंगे | शाम को वस्त्र उतार कर  रख सकते हैं या आगे पहन भी सकते हैं | चंद्रमा को पूजा स्थान जहाँ आप धूप बत्ती आदि करते हैं,  वहां किसी भी पात्र  में रख दें या टांग दें |

विधान पितृ ऋण मुक्ति  – सती प्रसन्न प्रयोग

पितरों के साथ ही सतियाँ होती हैं और बिना उनकी पूजा के सब विधान अधुरा  रहता है | इसलिए आप इसे सर्व पितृ श्राद्ध के दुसरे दिन प्रथम नवरात को या किसी भी रविवार को कर सकते हैं | अगर शनिवार प्रयोग करें तो इसे रविवार करें | जब सती प्रसन्न होती है तो कभी कोई कमी नहीं रहती |

आप सुबह उठें, स्नान आदि से निवृत होकर प्रसन्न चित्त से भोजन तैयार करें | इसमें आपने 7 कन्या को 7 सतियों का प्रतीक मान कर पूजन करना है | इसके लिए आप भोजन में खीर, हलवा और छोले-पूरी भी बना सकते हैं या जो भी आपको अच्छा लगे | सेब आदि जरुर ले आयें और भोजन के बाद कंजकों को दे दें और दक्षिणा देकर प्रसन्न करें | प्रयोग के लिए आप अपनी सतियों से निवेदन करें कि हे सतियों मैं आपके नाम से भोजन दे रहा हूँ, आप ग्रहण करें और सात कंजकों को बुला कर उनके चरण धोएं और उन्हें बैठा कर  भोजन करायें और चुनरी आदि  देकर उनसे आशीर्वाद लें,  आपका दूसरा प्रयोग यहाँ पूरा हो जाता है | इसे साल में एक बार करना है | जब भी साल में यह प्रयोग करें, चंद्रमा दोबारा बनाने की जरूरत नहीं, वोही इस्तेमाल कर सकते हैं,  वस्त्र सिला सकते हैं |

पितृ ऋण मुक्ति

अब सवा मीटर जो वस्त्र आप लाये थे उसे बिछा लें और उसके एक कोने में थोड़े चावल, अक्षत आदि रख दें और उसमें 5 बताशे, 5 छोटी इलायची, 5 लोंग, 5 सुपारी, 5 सफ़ेद गुलाब के फूल, एक रूपये या पांच रुपये का सिक्का बाँध दें और निम्न मन्त्र का 108 बार यानी एक माला जप करें | माला कोई भी ले लें | काले हकीक की उतम रहती है अथवा कोई भी ले लें |

|| ॐ प्रीं सर्व पितृ प्रसनों भव ऋण मुक्ति भव ॐ ||

इसके बाद उस वस्त्र को किसी भी नदी पर जाकर पाँच बार गायत्री मन्त्र का जप कर जल प्रवाह कर दें |

इस तरह ये प्रयोग पूर्ण हो जाता है और साधक को हर क्षेत्र में तरक्की देता है | ये हमारा और कई लोगों का परखा हुआ विधान है |

महाकाल ज्योतिष दरबार पुष्कर
 गुरुदेव भवानी ज्योतिषी
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कॉल करे :-   पं. एल. एन. शास्त्री                      
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                गुरुदेव भवानी ज्योतिषी
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